
मैं पिछले हफ्ते फिर बीमार पड़ गया। नवंबर का महीना शुरू होते ही ऑफिस में आधे लोग खाँस रहे थे, मेट्रो में हर दूसरा आदमी रुमाल से मुँह ढक रहा था, और मैंने सोचा था कि मेरा इम्यून सिस्टम तो लोहा है। तीन दिन बाद मैं खुद बिस्तर पर था – नाक बंद, गला खराब, बदन टूट रहा था और हल्का बुखार। दवा लेने की बजाय मैंने इस बार फैसला किया कि पहले घर के नुस्खे आजमाता हूँ। जो चार-पाँच दिन मैंने गुजारे, उससे मुझे यकीन हो गया कि हमारी दादी-नानी सचमुच डॉक्टर थीं।
सबसे पहला काम मैंने किया – अदरक वाली चाय। ताजी अदरक को कूटकर, दो-तीन तुलसी के पत्ते, थोड़ी-सी काली मिर्च, एक लौंग और शहद डालकर उबाला। दिन में चार-पाँच कप पीता रहा। पहले तो लगा कि बस स्वाद के लिए पी रहा हूँ, लेकिन दूसरे दिन से गले की खराश गायब हो गई। अदरक में जिंजेरॉल होता है जो वायरस को मारता है और सूजन कम करता है। तुलसी तो हमारे यहाँ भगवान का रूप है, उसका रस इम्यूनिटी को तुरंत बूस्ट देता है। मैंने तो बाद में इसमें दालचीनी भी डालनी शुरू कर दी – स्वाद और ताकत दोनों बढ़ गए।
दूसरा सबसे बड़ा साथी बना हल्दी वाला दूध। मेरी माँ जब भी हमें सर्दी होती देखतीं, रात को सोने से पहले एक ग्लास गर्म दूध में आधी चम्मच हल्दी और चुटकी भर काली मिर्च डालकर पकड़ाती थीं। मैं बड़ा होकर उससे भागता था, कहता था ये पीला-पीला दूध अच्छा नहीं लगता। लेकिन इस बार जब बुखार 100 पार कर गया तो मजबूरन पीया। रात भर पसीना आया और सुबह बुखार आधा रह गया। हल्दी का कर्क्यूमिन एंटी-इन्फ्लेमेटरी और एंटी-वायरल है, ये तो अब साइंस भी मानती है। बस ध्यान रहे कि दूध ज्यादा गर्म न हो और हल्दी देसी वाली हो, बाजार की पैकेट वाली में कलर ज्यादा होता है।
तीसरा नुस्खा जो कमाल का लगा – भाप लेना। एक बड़े बर्तन में पानी उबाला, उसमें दो विक्स की गोली या अजवाइन-पुदीना डालकर तौलिया ओढ़कर भाप ली। दस-पंद्रह मिनट में नाक खुल गई, सिर का भारीपन कम हो गया। मैं तो इसमें नीलगिरी का तेल (यूकेलिप्टस ऑयल) की चार-पाँच बूंदें डाल देता हूँ, पूरा कमरा स्पा बन जाता है। रात को सोते वक्त तकिया के पास विक्स लगाकर सोता हूँ तो पूरी रात खाँसी नहीं आती।
गले के लिए सबसे पुराना और भरोसेमंद – शहद और अदरक का रस। एक चम्मच शहद में आधा चम्मच अदरक का रस मिलाकर चाटता रहा। शहद गले को कोटिंग करता है, खाँसी रुकती है और अदरक वायरस से लड़ता है। मेरी बेटी जब छोटी थी तो रात में खाँसते-खाँसते सो नहीं पाती थी, बस यही खिलाते थे। पाँच मिनट में चुप हो जाती थी। अब भी घर में शहद की बोतल हमेशा फ्रिज के दरवाजे पर रहती है – दवा नहीं, आपातकालीन हथियार है।
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नाक बंद हो तो नमक पानी की भाप या नेटी पॉट कमाल करता है। मैं सिंपल तरीका अपनाता हूँ – गुनगुने पानी में आधा चम्मच नमक डालकर गरारा करता हूँ, फिर उसी पानी से नाक साफ करता हूँ। पहले लगा कि ये बहुत देसी तरीका है, लेकिन दो दिन में साइनस का दर्द गायब। डॉक्टर बाद में मिले तो उन्होंने भी यही कहा कि इससे बेहतर कुछ नहीं।
खाने में मैंने सिर्फ घर का हल्का खाना लिया – मूंग की दाल, खिचड़ी, सूप। बाहर का कुछ नहीं छुआ। दाल में जीरा-हींग का तड़का, हल्दी-काली मिर्च डालकर बनाई। दाल तो वैसे भी प्रोटीन देती है और पचने में आसान होती है। ऊपर से सूप में लहसुन और अदरक डालकर पीता रहा। लहसुन में एलिसिन होता है जो एंटीबायोटिक की तरह काम करता है। मैं तो कच्चा लहसुन भी चबा लेता हूँ – बदबू के डर से घरवाले दूर भागते हैं, लेकिन सर्दी भी दूर भागती है।
एक चीज जो मैंने पहले कभी नहीं आजमाई थी – गिलोय। पड़ोस की आंटी ने कच्ची गिलोय की डंडी दी। उसे उबालकर दिन में दो बार पीया। स्वाद कड़वा होता है, लेकिन तीसरे दिन से बदन का दर्द एकदम गायब। गिलोय इम्यूनिटी को इतना बूस्ट करती है कि कोरोना काल में भी लोग इसे उबाल-उबालकर पीते थे। अब मेरे घर में गिलोय का पाउडर हमेशा रहता है।
रात को सोते वक्त मैंने एक पुराना नुस्खा आजमाया – सरसों के तेल में लहसुन और अजवाइन गरम करके छाती और पैर के तलुओं पर मालिश की। ऊपर से मोजे पहनकर सो गया। रात भर गर्माहट बनी रही और सुबह खाँसी आधी रह गई। बचपन में माँ ऐसा करती थीं, हम हँसते थे कि ये गाँव का इलाज है। अब लगता है कि गाँव वाले हमसे ज्यादा समझदार थे।
पानी खूब पिया – गुनगुना पानी। हर आधे घंटे में एक ग्लास। बॉडी में जितना पानी रहेगा, उतना ही वायरस को बाहर निकालने में मदद मिलेगी। नींबू डालकर, पुदीना डालकर, कभी सेंधा नमक डालकर – बस पीते रहा। पेशाब भी साफ आने लगा, मतलब बॉडी डिटॉक्स हो रही थी।
एक बात जो मैंने सख्ती से की – मोबाइल दूर रखा। बीमार होने पर हम नेटफ्लिक्स देखते रहते हैं, नींद नहीं आती और ठीक होने में देर लगती है। इस बार रात नौ बजे लाइट बंद, दस बजे सो गया। भरपूर नींद ने आधा काम कर दिया। शरीर को लड़ने का मौका मिला।
पाँचवें दिन मैं लगभग ठीक था। बुखार चला गया, खाँसी बहुत कम हो गई, नाक खुल गई। दवा की एक गोली भी नहीं खाई। सिर्फ घर के नुस्खे, थोड़ी सी सावधानी और ढेर सारी नींद। अब जब भी कोई बीमार पड़ता है, मैं सबसे पहले यही कहता हूँ – पहले तीन दिन तो घर का इलाज कर लो, फिर भी न ठीक हो तो डॉक्टर के पास जाना। ज्यादातर मामलों में तीसरे-चौथे दिन तक शरीर खुद लड़ लेता है।
अब सर्दी शुरू होते ही मैं तैयार रहता हूँ। घर में अदरक-हल्दी-तुलसी-शहद-लहसुन हमेशा रहता है। जैसे ही गला खराब लगता है, उसी दिन से शुरू। बचपन की वो बात याद आती है जो दादी कहती थीं – “बीमारी को घर में घुसने मत दो, दरवाजे पर ही रोक दो।” अब मैं दरवाजे पर अदरक वाली चाय लेकर खड़ा रहता हूँ। सर्दी-खाँसी आती है, चाय पीती है और चली जाती है।
तुम भी कोशिश करके देखो। दवा बाद में भी ले सकते हो, लेकिन पहले अपने रसोई और बगीचे को दवा की दुकान बना लो। वहाँ की दवाएँ न फ्री हैं, न साइड इफेक्ट वाली हैं, और सबसे बड़ी बात – हमेशा उपलब्ध हैं। बस थोड़ा विश्वास और थोड़ा धैर्य चाहिए। ठीक हो जाओगे। वादा करता हूँ।