
मैं आज रात को फिर दो बजे सोया और सुबह छह बजे उठ गया। चौथे दिन लगातार ऐसा करने के बाद अब मेरी आँखें जल रही हैं, सिर भारी है और चाय भी काम नहीं कर रही। पहले मुझे लगता था कि नींद तो बस समय की बर्बादी है, लेकिन पिछले कुछ सालों में जो अनुभव हुए, उसने मुझे समझा दिया कि नींद हमारी जिंदगी का सबसे अहम हिस्सा है। अगर हम इसे नजरअंदाज करते हैं, तो धीरे-धीरे पूरी जिंदगी ब्याज समेत चुकानी पड़ती है।
छोटी थी तब दादी कहती थीं, “सोते वक्त शरीर अपना हिसाब-किताब करता है।” उस समय हँसी आती थी, लेकिन अब समझ आया कि वो बात बिल्कुल सही थी। जब हम सोते हैं, तब हमारे दिमाग की कोशिकाएँ साफ-सफाई करती हैं। जो जहरीले पदार्थ दिन भर में जमा होते हैं, उन्हें ब्रेन का अपना प्लंबर सिस्टम (ग्लिम्फैटिक सिस्टम) बाहर निकालता है। अगर हम रात को ठीक से नहीं सोते, तो वो कचरा दिमाग में ही रह जाता है। लंबे समय तक ऐसा चलता रहे तो अल्जाइमर जैसी बीमारियाँ दस्तक देने लगती हैं। अब मुझे पता है कि दादी विज्ञान की भाषा में बात कर रही थीं।
मैंने एक बार लगातार दस दिन सिर्फ पाँच-छह घंटे की नींद ली थी। ऑफिस में प्रेजेंटेशन देना था, घर पर बच्चा छोटा था, रात को जागकर काम निपटाता। दसवें दिन मैं मीटिंग में बैठा था और अचानक मेरी आँखें बंद हो गईं। पलक झपकते ही मैं सो चुका था। जब आँख खुली तो बॉस मुझे घूर रहा था। उस दिन शर्मिंदगी हुई, लेकिन उससे बड़ी सीख मिली। नींद की कमी से हमारा दिमाग पहले चेतावनी देता है, फिर धीरे-धीरे बंद होने लगता है।
शरीर की मरम्मत भी नींद में ही होती है। मांसपेशियाँ टूटती-बनती हैं, हड्डियाँ मजबूत होती हैं, इम्यून सिस्टम नई सेना तैयार करता है। बचपन में अगर चोट लग जाती थी तो माँ कहती थीं, “सो जाओ, सुबह तक ठीक हो जाएगा।” अब समझ आता है कि वो जादू नहीं था, वो ह्यूमन ग्रोथ हार्मोन था जो रात दस बजे से दो बजे के बीच सबसे ज्यादा निकलता है। अगर हम इस समय सो नहीं रहे, तो शरीर की फैक्ट्री बंद पड़ी रहती है।
दिल की बीमारियों का भी नींद से गहरा रिश्ता है। जो लोग लगातार छह घंटे से कम सोते हैं, उनके दिल का दौरा पड़ने का खतरा 48% तक बढ़ जाता है। मैंने अपने एक दोस्त को खोया है इसी वजह से। वो दिन-रात काम करता था, कहता था, “सोना तो मरने के बाद भी सकते हैं।” पिछले साल उसका दिल एक रात को हमेशा के लिए सो गया। अब उसकी कुर्सी ऑफिस में खाली पड़ी रहती है और हम सबको अफसोस होता है कि हमने उसे कभी नहीं रोका।
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वजन बढ़ने का भी एक बड़ा कारण नींद की कमी है। जब हम कम सोते हैं, तो शरीर में घ्रेलिन हार्मोन बढ़ जाता है जो भूख बढ़ाता है और लेप्टिन कम हो जाता है जो भूख को कंट्रोल करता है। नतीजा यह होता है कि रात को फ्रिज खोलकर हम कुछ न कुछ खाते रहते हैं। मैंने खुद देखा है कि जब मैं आठ घंटे सोता हूँ, तो सुबह नाश्ते में एक पराठा काफी होता है, लेकिन जब पाँच घंटे सोया, तो तीन पराठे भी कम लगते हैं।
मानसिक स्वास्थ्य पर तो नींद का असर सबसे खतरनाक होता है। डिप्रेशन, चिड़चिड़ापन, चिंता – ये सब नींद की कमी के शुरुआती लक्षण हैं। मेरी एक सहेली बहुत दिनों तक रात को सो नहीं पाती थी। धीरे-धीरे उसका व्यवहार बदलने लगा। बात-बात पर रोने लगती, छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा। डॉक्टर ने जब नींद की गोलियाँ दीं, तब जाकर कुछ सुधार हुआ। लेकिन सच्चाई ये है कि गोलियाँ सिर्फ लक्षण दबाती हैं, असल इलाज है – भरपूर नींद।
बच्चों के लिए तो नींद और भी जरूरी है। जो बच्चे कम सोते हैं, उनका दिमाग ठीक से विकसित नहीं होता। पढ़ाई में ध्यान नहीं लगता, याद रखने की क्षमता कम हो जाती है। मेरे बेटे के साथ भी ऐसा हुआ था। सातवीं क्लास में उसका रिजल्ट बहुत खराब आया। हम परेशान थे। फिर पता चला कि वो रात को मोबाइल पर गेम खेलता रहता था। जब हमने सख्ती की और रात दस बजे तक सोने की आदत डाली, तो अगले साल वो टॉप करने लगा। नींद ने उसका दिमाग खोल दिया।
अब सवाल ये है कि कितनी नींद काफी है? ज्यादातर वयस्कों को सात से नौ घंटे की नींद चाहिए। लेकिन सिर्फ घंटे गिनना काफी नहीं। नींद की क्वालिटी भी मायने रखती है। गहरी नींद (डीप स्लीप) और सपनों वाली नींद (आरईएम स्लीप) दोनों जरूरी हैं। अगर रात को बार-बार नींद टूटती है, तो आठ घंटे सोने के बाद भी थकान रहती है।
पर्याप्त नींद लेने के लिए कुछ छोटी-छोटी आदतें बहुत काम आती हैं। रात को दस बजे के बाद मोबाइल दूर रख दो। कमरे में अंधेरा पूरा हो, तापमान ठंडा हो। सोने से दो घंटे पहले भारी खाना मत खाओ। मैंने खुद एक डायरी शुरू की है – हर रात लिखता हूँ कि कितने बजे सोया और सुबह कितने बजे उठा। महीने भर में ही फर्क दिखने लगा। चेहरा चमकने लगा, गुस्सा कम हुआ, काम में मन लगने लगा।
कई लोग कहते हैं कि नेता, बिजनेसमैन कम सोते हैं फिर भी सफल हैं। हाँ, कुछ लोग जेनेटिकली कम नींद में चल जाते हैं, लेकिन वो 1% से भी कम होते हैं। बाकी 99% लोग अगर कम सोएँगे, तो जल्दी या देर से टूट जाएँगे। मार्गरेट थैचर और नेपोलियन कम सोते थे, ये बात मशहूर है, लेकिन ये भी सच है कि दोनों की उम्र ज्यादा नहीं हुई और दोनों ने आखिरी साल बहुत तकलीफ में गुजारे।
आज मैं जब भी किसी ज юनीयर को देखता हूँ जो रात भर जागकर काम कर रहा है, तो उसे रोकता हूँ। कहता हूँ, “भाई, ये प्रमोशन कल भी मिल जाएगा, लेकिन जो सेहत आज खराब कर रहे हो, वो कभी वापस नहीं आएगी।” जिंदगी मैराथन है, स्प्रिंट नहीं। जोप
अंत में यही कहूँगा – नींद कोई लग्जरी नहीं है, ये हमारी बुनियादी जरूरत है। जैसे हमें खाना, पानी, हवा चाहिए, वैसे ही नींद भी चाहिए। अगर आज तुम रात को ठीक से सो लो, तो कल सुबह तुम्हारा शरीर, दिमाग और दिल – तीनों तुम्हारा शुक्रिया अदा करेंगे। मैंने अपनी गलतियों से सीखा है, तुम मेरी गलतियों से सीख लो। आज रात फोन साइलेंट कर दो, लाइट बंद कर दो और आँखें बंद करके सिर्फ साँसें गिनो। सुबह जब उठोगे, तो लगेगा जैसे कोई नई जिंदगी शुरू हो रही हो।
सो जाओ। सच में। अभी। जिंदगी इंतजार कर लेगी।